बोलना एक कला

बोलना और प्रभावशाली बोलना, एक कला है। इस कला में माहिर होने के लिए कुछ प्रयास करने पड़ते हैं। यह भी सही है कि कई लोगों को बोलने में जन्मजात महारत हासिल होती है। लेकिन जरूरी नहीं है कि संवाद कला में जिन्हें जन्मजात महारत हासिल है वहीं अपना प्रभाव जमा सकें। यह एक कला है और यह कला बकायदा सीखी जा सकती है।

बात करने की हो कला तो आप भी बड़े से बड़े कार्य को लोगों की मदद से पूर्ण कर पायेगें .बातों के जरिये आप अपने व्यापार को बढा पायेगें . आज हमारे जीवन में शब्दों की बड़ी महत्वता है .हमारी वाणी से निकले शब्द ही हमें आगे बढ़ाने और नीचे गिराने में आगे आते है .बोलने की कला लोगों को एक उचाई तक ले जाती है .आप भी यदि अच्छे शब्दों का प्रयोग करते है बोलने का धन सीखते है तो आने वाले समय में उन्नति को हासिल करेगें .

बिजनेस मैनेजमेंट, होटल मैनेजमेंट जैसे अन्य क्षेत्रों में बात करने की कला बहुत महत्त्व रखती है .इसके जरिये आप एक अच्छे स्तर तक पहुंच सकते है .

बोलना भी एक कला है। ज्यादा बोलना घातक है। कम बोलना अच्छा है। लेकिन कई बार चुप्पी भी फायदेमंद होती है। चारों पर अगर गंभीरता से विचार करेंगे तो आप पाएंगे कि इन सभी के नेचर अलग अलग होती है। अगर आपके पास बोलने की कला नहीं है तो ज्यादा नहीं बोले। कम बोले। ज्यादा सुने। परिस्थितियों को देखते हुए कई बार चुप रहना भी सीखें।

कम बोले, ज्यादा सुने
बुजुर्गों का अनुभव कहता है कि बोलें कम सुने ज्यादा। बुजुर्गों का यह अनुभव आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था। इससे ना वाद होगा ना ही विवाद। जीभ को आराम मिलने के साथ ही आपकी स्मरण शक्ति भी अच्छी रहेगी। बोलें उतना ही जीतना जरूरी हो। जानकारी के अभाव में या आधी अधूरी जानकारी के आधार पर ज्यादा बोलना हमेशा घातक होता है। इसलिए बोलने से पहले तौल लें कि हम क्या बोल रहे हैं। क्योेंकि कमान से निकला तीर और मुंह से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते हैं। गलत दिशा में गया तीर और मुंह से निकले गलत शब्द हमेशा घाव करते हैं।

चुप रहना भी फायदेमंद हो सकता है
कई बार चुप रहना भी फायदेमंद हो सकता है। अक्सर कई बार हम बेवजह महज अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए बोल देते हैं। यह गलत है। अगर आपको किसी चीज की जानकारी नहीं है या फिर मामला विवादस्पद है तो चुप रहना श्रेयकर है। इससे आप विवाद से बचोगे ही आप हंसी का प़ात्र नहीं बनोगे। आपके चुप रहने को कोई बुरा नहीं ​मानेगा, लेकिन गलत बोलना गले पड़ सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि आप हमेशा चुप्पी धारण करके रखें। जहां जितनी जरूरत हो वहां जरूर बोलें। लेकिन जहां आपको लग रहा है कि पूरा मामला आपकी समझ से बाहर है। वहां अनावश्यक उलजूलल बोलकर हंसी या विवाद का पात्र नहीं बनें।

नौकरी भी दिलाती है बोलने की कला

जॉब या दाखिले के लिए ग्रुप डिस्कशन के माध्यम से अभ्यर्थियों के व्यक्तित्व की विभिन्न विशेषताओं को जानने-समझने की कोशिश की जाती है।

 

इसके तहत नेतृत्व क्षमता, प्रभावशाली ढंग से अपनी बात कहने की योग्यता, पहल करने की क्षमता, टीम के साथ काम करने की क्षमता आदि कई बातें शामिल होती हैं। विभिन्न परीक्षार्थियों के बीच होनेवाला ग्रुप डिस्कशन कई तरह का होता है, जैसे केस स्टडी से संबंधित अथवा करंट अफेयर से संबंधित। 

जो भी टॉपिक हो, उस पर अभ्यर्थियों को निर्धारित नियमानुसार अपने-अपने विचारों का आदान-प्रदान करना होता है। इस दौरान कभी तो अभ्यर्थियों को एक-एक करके बोलने का अवसर मिलता है, तो कभी अवसर को झपटना पड़ता है। बहस के दौरान आप कितने आक्रामक या रक्षात्मक हो सकते हैं, इसका आकलन भी जीडी के माध्यम से किया जाता है।